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के न रह जायँगे। इतना परिश्रम करके तो जीने के लिए मनुष्य कोई भी काम कर सकता है। बाबा ! पाई गर्ने काम का सुधार कर कमा सिधातू है 1 मह तो बड़ा अच्छा काम हैं, देखिए मंगल के त्याग और परिश्रम को ! --गाला ने कहा । हाँ, तो यह अच्छी बात है। कह कर वंदन चुप हो रहा । मंगल ने कहा—याकुर ! मैं तो चाहता है कि एक लड़कियो की भी पार्टमशाला हो जाती; पर उनके लिए स्त्री अध्यापिका की आयग्यवती होगी, और यह दुर्लभ है ।। गाला जी मह दृश्य देखकर बहुत उत्साहित हो रही थी, वोनबावा 1 तुम कहो तो मैं ही लडवियो यो पाती। बदन नै अाश्चर्य से शाला की बोर देणा; पर वह कहती ही रही-जंगन में तो मेरा मन भी नहीं लगता । मैं इस विनार कर की है. मैं उस बारी नदी के पहाडी मंडल से जीवन भर निभने ना नहीं । तो क्या तु मु छ र...कहते-ककृते बदन का हृदय भरे जा, अधेि इपइन्ना आई। वह दुर्दान्त मनुष्य मोम के मान मिलने लगा । गला ने कहानहीं बाबा, तुग मी मरे ही राम रही न ! वन ने कहा- नहीं हो सकता गाला ! तु मैं अधिक-से-अधिक पाहता है। पर पुछ और भौ सौ ग्रस्तुएँ है, जिन्हें मैं इस जीवन में छोड़ नही रोवता । में समानता हैं, उनसे पीछा छुड़ा लेने की तेरी भीतरी इच्छा है, क्यों ? | गाला ने कहा—अन तो पर चलवार इस पर फिर विचार किया जायेगा। —पंगन के सामने वह इस विवाद के बन्द कर देने के लिए अधीर थी। ऊ के स्वर में चंदन ने कहा--नी ऐसी ही इच्छा है, तो घर हो व ल ! —यह वात कुछ घी और अचानक बदन के मुंह से निकल पड़ी ।। | मंगल जल के झिए इत्ती यच से चला गया था, तो भी गाला वहुत घायल हो गई। हथेतिथी पर गै घरै हुए वह टपार्टम आँसू गिराने दगी; पर न जान गयी उस गुजर मा मन अधिक कठोर हो गया था । सायना का एक मि । न मिला। वह तब तक पुप रेती, जब तक मगल ने भाकर मुछ मिठाई और जल सामने नहीं रखा | मिठाई देख ही ददन वोन उड़ा--मुन्ने सहे नही पाहिए । बहू जल का लौटा उठानर सुन्नू 0 पी गया और इंद्र धड़ा हुआ, मंगन मी अपर देयता हुआ बौना-कई मीन जाना है, बुढ्य आदमी है । तो चुनता । । । सीढियाँ उतरने लगा। गाला ने उसने चली लिए नहीं कहा । बहु बैठी थी । क्षोभ से भरी हुई तप ही धी; पर ज्योंही उसने देखा विः, बदन देरी से उतर १६ : मरद घाइमष