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है, माँद तार भी लगेगा तो आपको विश्वास हो जायेगा आप सोगों की भिक्षा व्यर्थ नहीं फेंकी जाती ।। गाजा समीप के कपड़े की दुकान दे रही थी, वृन्दावनी धोती गी छट उद्यकी | आँखों में कुतूहल उत्पन्न कर रही थी। उसी भोली हुष्टि उस पर से न हटती थी । सहसा बदन में कहा--बूत और कागज ले लिये, किंतु पिंशले तो यहाँ नही दियाई नै गाला ! वो न सही, दुसरे दिन आकर ले लँगी–गाला ने यहा; पर वह देय रही। | श्री धोती । बदन में दहा-क्या देय रहीं हैं ? दुकानदार था तुर, उसने कहा ठार ! यह धोती लेना चाहती है, बची भी इस शो की एक ही है ।। जंगी बदल दस नागरक प्रगत्मता पर चाले तो हो गया, पर बौला नही । गाला ने कहा नहीं, नही, मैं भला इसे लेकर क्या करूंगी 1 मंगप्त में वड़ास्त्रियों में लिए इससे पूर्ण नग्न र वजेई हो ही नहीं सकता। रत' में ऊपर से इसे पहन लिया जाय, तो शह अकेला राय झाम दे सकता है। मन को मंगल का जौलना बुरा तो लगा, पर वह गाला का मन बने | लिए वीजा--तो ते ले गाला ! गाना में अल्हडपन में कहा—अच्छा हो ! मंगच नै मोल ठीक किमी । घोती लेकर गाली के सरन् मुख पर एक बार | बुहल व प्रसन्नता छा गईं । तीनों बात करते-कर उस छड़े में बाजार से बाहर आ गर्म । झुप कड़ी हो चली थी । मंगल ने कहा—मेरी कुट्टी ही पर विश्राम नीजिए न । एप कम होने पर चले जाइएगा । गाना ने कहा— बाबा हम लोग पायाला भी देख लेगे । बदन ने सिर हिला दिया । मंगल गैः पीछे दोका चलने लगे। बदन इस समय कुछ चिन्तित था । वह चुपचाध जद मगल' की गावाला में पहुँच गया, तय उसे एवः शाश्चर्यमय ब्रोध हुआ । किन्तु वहाँ का दृश्य वैखरी ही उसका मन बदल गया । यह कुव्रहुल से काले बीड और ले। * सम्बन्ध्र में पूछने लगा । क्लास का समय हो गया था, मंगल वेः सकैत ने एक बालक में पंडा या दिमा। पास ही खेलते हुए बालक दौड आपे; अपने आरम्भ हुआ। मंगल को पत्न-सहित जन बालो मने पढारी देबर याला को एक तृप्ति हुई । अदग भी अप्रसन्न न रह सका। वैसने हँसकर कहा–भई, तुम पढाते हो, सो तो अच्छा कत हो; पर भह पढ़ना किस काम का होगा ? में नाम कई बार सुग झुका है कि पढ़ने से, शिक्षा से, मनुष्य मुघरता है; पर मैं तो समझता है ये रिशी बाग पपनस : १५४