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शासन कहते हैं। प्रणयी मौवन में मुनहरा पान्ही देते हैं, और माता अपने बच्चे के सुनहले बालों के गुच्छों पर ना लुटा देती हैं। यह कोर, निर्दम, आम्हारी पीला सोना ही तो रोना नहीं है।-सोमदेव ने कहा । सोमदेव ! कठोर परिश्रम से, साई अरस से, नये-नये उपाय है, मनुष्य पृष्नी से सोना निकाले रहा है; पर वह भी किसी-न-किसी प्रगार फिर गृी में जा घुसता है। मैं सोचता है कि इतना यन क्या होगा ! सुटाकर देयं ? सत्र तो लुटा दिया, अब कुछ कोर में है भो ! या 1 –अश्चिर्य से मिरजा ने पूछा। संचित धन अव नही रह ।। क्या वह प्रभात भैः सरते हुए ओस मौ बूंदों में अरुय किरणों की छाया श्री ! और, मैंने जीवन की कुछ गुख भी नही लिया ! | सरकार ! राज भुय सन के पारा एम साथ नहीं आते, नहीं तो निभाता को सुख वोटने में बड़ी बाधा उपस्थित हो जाती ! चिढ़कर मिरा में गह-जागो ! सोमदेन चला गया, मिरजा एकान्त में जीवन नै गुपियों को सुलझाने लगे । यार्थी ः मफत जन को निनमेप देते हुए थे संगमर्गर में उसी प्रकोप्य के गान निश्चैप्टू थे, जिसमे बैठे थे । नूपुर की नमार ने स्वप्न भंग कर दिया-- देखो तो इरो हो गया गया है, बसता नों नप ! तुम चाहो तो यह दोन ऐ ! इसका पिगडा तो तुमने होने से साद लिया है ! मलना । बहुत ही जाने पर भी सोना-सोना ही है ! ऐसा दुरुपयोग ! तुम इसे देखो तो, म दुखी है? नै जाओ, जब मैं अपने जीवन के प्रश्नो पर विचार कर रहा है, तच तुम महे खिलवाट दिवाकर मुझे भुनाना चाहो हो । मैं तुम्हें भुला सकती हैं1' -मिरमा गग मह रूप प्राचनम ने कम है। देखा था । मह इनः गर्म सिंगन, प्रेम-पूर्ण चुम्बन भौर स्निग्ज़ हुस्ट से देव और-प्रोत रहती थी—आज अचानक यह वैमा । रासार अब आप उसके लिये एक गुनहगी या धीर जीवन एक भएर स्वप्न बा । बंजरीट मोती उगलने भने । | मिरजा को बेतना हुई—इसी शयनम को प्राप्त करने में लिए तो वह इ विचारता-सोचता है, • पिर यह नया ] यह क्या—भरी एक नात मी यह हे संकरे नहीं उड़ा मक़ती, झट उफ्रिा प्रतिकार ! उन्होंने उत्तेजित होकर कहा १४६ : प्रारद वाड्मय