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भाई 1-बहती हुई एष मंचल छोकरी हाथ बाँधे मामने आकर बढ़ी हो ६ । उरागी भ६ हँस रहुँ यौ ! वह अपने हकों को बड़े दबाई से रोक रही। थीं । देखो तो आज से भगा हो गया हैं । बोलती ही नहीं, मन मारे बढ़ी है । नहीं भन्नका ! बारा-पानी रख देती है । मैं तो इससे डरती है ! और कुछ नहीं करती। फिर सय क्या हो गया है, वरना नहीं तो सिर के बाल भौच मानूंगी । गुदरी को विनास गा वि मलका वदामि ऐसा नहीं पर मफत । ष ताली पीटकर हैराने लगी और बोली मैं समई गई ! उत्कण्ठा नै भला ने कहा--तों बातो वो नहीं ? बाऊँ सरकार को बुला लाऊँ, मैं ही इम मरेम की बात जानते हैं। सच कहू, ने कभी इसे दुलार करते हैं, पुचकारते हैं? मुझे सो निधास नहीं होता । तो मैं ही नहीं है, तु इसे उठा ले । सुन्दरी नै मल्लीन सोने के तारों से बना हुआ पिंजरा उश निया, और अन्ननम्' अर पौतों पर हा श्रमशविर पोंछती हुई, इसके पीछे- पीपली ।। | अपयन को कुन गली परिमल में मस्त हो गई। झलो में मरन्द-पान 'रिने के लिए घरों-सी पंखड्रिम खोली । मधुप लडखडाये । मलयानिल सुगना देने के लिए आगे-झामे दौड़ने लेगा। | भ ! सो भी मन का | ओह । कितना सुन्दर सर्प भीतर फुफकार रहा है। कहनुर तफुरन गजमुक्ताओं की एकावती बिना अघ्रा है, क्यों ? बह वो गान की । वह मे कौन हैं ? कोई नही सरकार ! –कहते हुए सोमदेव ने विचार में बाधा उपस्थित कर दी ! हो, सोमदेव में भून कर रहा था। बहुत-से लोग वेदान्त की व्याख्या करते हुए कमर में देवता बन जाते है और भीतर उसके बहू नॉन-असोट चला करता है। जिसकी सीमा नही ।। नहीं तो सोमदेव | बगाल को सोने में नहुल्ला दिसा; इसका कोई तरकास फल न हुआ— समझधा हैं वह मुखी न हो सकी। सोने की परिभाषा कदाचित् सबके लिए भिन्न-भिन्न हो ! कवि बहुवे हैंसजेरी बा निर सुननी है, राजनीति- निद-भुन्दर राम को, गुनहला कैवाल : १४७