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हुए कहा-चलौ वैटौं 1 मसीह-जननी को छाया मे; तुमने गमक्ष निया होगा कि उसवे बिना तुम्हें शान्ति न मिगी ! बिना एक शब्द कहे पादरी के हाथ वामम और चैप्टी दोनों उठकर च ।। जाते हुए बाग में एक बार उस बंगले को निराश दृष्टि से देखा । झीरे-हरे तीनो चले गये। अरािमकुर्सी पर पड़ी हुई लक्षिका ने एक दिन जिज्ञासा-भरी दृष्टि से मना की और देखा, तं। वह निर्भीक एमजी अपनी दृढ़ता में महिमापूर्ण थी । लतिको का धर्य लौट आया। उसने कहा- अब ? कुछ चिन्ता नहीं बेटी, मैं हैं ! सब वस्तू घेचकर बैंक में पग जमा कर दो, चुपचाप भगवान के भरोसे रुवी-राखी बार दिन बीत जायगा । ---रारना । फहरू । मैं एक बार उस वृन्दावन वाले गोस्वामी के पास चलना चाहती हैं, तुम्हारी क्या सम्मति है ? –लतिका ने पूछा। । पहले यह प्रबन्ध कर लेना होगा, फिर बहाँ भी चो । चाप गिअंग ? आज दिनभर तुमने कुछ नहीं पाया, में ले आऊँ—अला? हम लोगों को जश्न के नवीन अध्याय के लिए प्रस्तुत होना चाहिए । नतिजा ! 'सदैव प्रस्तुत रही का महामंत्र भैरवन का रहस्य है-इस बैंक लिए, गुव के लिए, जीवन जी लिए और मरण के लिए ! उरामं शिथिलता न आनी चाहिए ! निपत्तियों का को ऑरह निकल जाती है; मुय के दिन अफश के सदृश पश्चिमी समुद्र में भापत रहते हैं। राभय घटना होगा, विताना होगा, और यह भूत-सत्य है कि दोनों का अन्त है ।। कनिका के मुरव पर पुति की रेखा फुट उठीं । ई गहीर बीत गयें। क्षति और धाम का सम्बन्धविच्छेद । गया था । बाथम अन्न पादरी के बँगले में रहता था, और घण्टी भी बड़ी रती 1 बाम त्रि काम में लग जाने के लिए जी-तो गरिम्नमें नर रहा था। वई अपना जीविषा स्यि करने के लिए प्रपलशन था । और, पाद घण्टी घो यपतिस्मा देकर जीवन वा कर्त्तव्य पूरा कर लेने की प्रसन्नता से कुछ सीग्रा हो गया, अब यह इतना झुगार नहीं चलता | परन्तु घण्टी ! आज अरा हो जाने पर भी, गिरना घः समीप याने ना के पुत्त पर बैठी, अपनी चपेड़-बुन में लगी है। अपने चित्र-विताब में लगी है-- १३४ : प्रसाद याङ्मय