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fक विजय ने, नवाब और गला दबाने याचे दाहिने हाथ को अपने बार हुप से और भी दृढ़ता से पौंपा । ननाय का दम घुट रहा था, फिर भी उसने अप मैं काट चाय; परन्तु पूर्ण क्रोधावेष में विजय को उसी वेदना न हुई, यह् हाथ की परिधि को नयाव है फण्ड के लिए मथासम्भव संकीर्ण कर हु मा । दूसरे ही दणि मैं नवाब अचेत होर गिर प । विजय अत्यन्त उत्तेजित था। सत्ता किसी ने उसके कन्धे पर ही मारी; पर वह ओछी होगी। चोट खाकर विजय ना मस्तक और भी भड़क चया, उसने पास ही पढ़ा हुआ। पत्थर चार नपाय का सिर कुचल दिया। इसकी घण्टो चिल्लाती हुई नाव पर भाना चाहती थी कि किसी नै जसरी धीरे-मै महान हो गया है, तुम यहां से झुट बचौ ! | कहनैयाला बाथम । उसके साथ भय-विह्न घण्टी नाव पर चढ़ गई । इहि गिरा दिये गये है। इधर नवाब का सिर फुचलकर जन्न बिनम ने देवा, राय वहाँ पट्टी न पौ, परन्तु एक दूसरी पारी भी। उरा विषय का हम कई र कहाबिजय बाद् ! यापार में बिजम वा उन्माद वैदा हो गया। वह एक बार सिर पगड़कर अपनी अमानक परिस्यित से अजगत हो गया । निरंजन दूर से यह काद्ध देय रक्षा था। अब अलग रहना उचित न सुमन झर बहुं भी पास आ गया । उसने कहा-विषय, अंच क्या होगा ? कुछ नही, फाँसी हो और कमा !---तिक भाव से विजय ने कहा । आप इन्हें अपनी नाव दे दें और यै नहाँ तक जा सकें, निकल जाएँ। इनका महाँ हुरना ठीक नहीं-स्त्री ने निरंजन है वहा ।। नहीं यमुना ! तुम अन्न इरा जीवन की अचाने नौ चिन्ता न करो, मैं इतना मायर नहीं हैं । —विजय ने मल्ला । परन्तु तुम्हारी माता भयो कहेगा विजय ! मेरी बात मानो, तुम इस समय तो फूट ही जा, फिर देखा जायगा। मैं भी कह रहा है, यमुना फी भी यहीं सम्मति है । एका दाग' में भुत्यु की विभीषिका नाराने ग! ! लड़कपन न करो, भागो। –निरंजन ने कहा। विज्ञम को सौच-विचारते और विलम्य पते देखकर यमुना मै बिगड़कर नहा--विम वायू ! महंगै अवसर पर सड़कपन अछा नहीं लगता। मैं कहती हैं, आप अभी-अभी चल जायें । आई 1 उप सुनते नही । | विजय ने सुना--‘ब्रश नहीं लगता !' ऊ, महू तो बुरी बात है। हाँ ठीक, तो देखा जायगा । जीवन नृह में ६ देने की वस्तु गाही । धौर किया भर १२६ : अमाघ मामय