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किशोरी सावधान होकर सुनने अगो। श्रीमन्द ने फिर कहूना अरिम्भ किया | भेरा व्यवसायं नष्ट हो चुका है, अमृतसर की संब सम्पत्ति इसी स्त्री के यह बन्धक है। उसके सद्धार का महीं उपाय है कि इसकी सुन्दरी कन्या माली से विजम का व्याह करा दिया जाय। किशोरी ने सगर्व एक बार श्रीचन्द्र की ओर देखा, फिर सहसा तिरभाग से बोली—निजम कर मधुर चला गया है । | श्रीचन्द्र ने पॐ व्यापारी के समान या- कोई चिन्ता नही, बहु मा जायगा । तब क्या इम लोग यही रहें, तुम्हें कोई कष्ट तो न होगा ? अब अधिक नोट न पहुँमा । मैं अपरायिनी है, मैं सन्तान के लिए अन्धी हो रही थी ! क्या मैं समा ग क जाऊँ ? --किशोरी की आँखों में झाँसू गिरने सगे ।। अच्छा तो उसे बुलाने के लिए मुझे जाना होगा। नहीं; उसे बुलाने के लिए आदमी गम है । चलो, साथ-मुँछु धोकर जलपाने कर तो । वाने ही घर में श्रीचन्द्र एव तिथि की तरह आदर-सत्कार पाने मगा। १२४:, प्रसव वाड्मय