आनन्द––नहीं प्रेमलता। आह! क्षमा कीजिये। मुझसे भूल हुई। मुझे इस तरह आपका नाम!
(हँसती हुई वनलता का प्रवेश)
वनलता––कान पकड़िये, बड़ी भूल हुई। क्यों आनन्दजी, यह कौन हैं? आप बिना समझे-बूझे नाम जपने लगे।
(प्रेमलता लज्जित-सी सिर झुका लेती है, वनलता फिर अदृश्य हो जाती है। आनन्द प्रेमलता के मधुर मुख पर अनुराग की लाली को सतृष्ण देखने लगता है। और प्रेमलता कभी आनन्द को देखती है, कभी आँखें नीची कर लेती है)।
आनन्द––प्रेमलता! प्रेमलता! तुम्हारी स्वच्छ आँखों में तो पहले इसका संकेत भी न था। यह कितना मादक है?
प्रेमलता––क्या! मैंने किया क्या?
आनन्द––मेरा भ्रम मुझे दिखला दिया। मेरे कल्पित संदेश में सत्य का कितना अंश था, उसे अलग झलका दिया! मैं प्रेम का अर्थ समझ सका हूँ। आज मेरे मस्तिष्क के साथ हृदय का जैसे मेल हो गया है।
वनलता––(फिर हँसते हुए प्रवेश करके) मैं कहती थी न! खोजते-खोजते चिरपरिचित को पाकर एक घूँट पीना और पिलाना। कैसे पते की कही थी? हमारे आश्रम की एकमात्र सरला कुमारी प्रेमलता आपसे एक घूँट पीने का अनुरोध कर रही है तब भी......
आनन्द––क्षमा कीजिये श्रीमती! मैं अपनी मूर्खता पर
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