खोजते-खोजते मैं तो थक गई। और शर्बत छलकते-छलकते कितना बचा, इसे आप ही देखिये। आप यहीं बैठे हैं और मैं कहाँ-कहाँ खोज आई।
आनन्द––मुझे आप खोज रही थी?
प्रेमलता––हाँ, हाँ, आप ही को। (हँसती है)
आनन्द––(रसाल और वनलता की बात मन-ही-मन स्मरण करता हुआ) सचमुच! बड़ा आश्चर्य है! (फिर कुछ सोचकर) अच्छा, क्यों? (प्रेमलता को गहरी दृष्टि से देखने लगता है)।
प्रेमलता––(जैसे खीझकर) आप ही ने कहा था न! कि मैं जा रहा हूँ। भोजन तो न करूँगा। हाँ, शर्बत या ठंढाई एक घूँट पी लूँगा। कहा था न? मीठी नारंगी का शर्बत ले आई हूँ। पी लीजिये एक घूँट!
आनन्द––एक घूँट! मुझे पिलाने के लिये खोजने का आपने कष्ट उठाया है! (विमूढ़-सा सोचने लगता है और शर्बत लिये प्रेमलता जैसे कुछ लज्जा का अनुभव करती है)।
प्रेमलता––आप मुझे लज्जित क्यों करते हैं?
आनन्द––(चौंककर) ऐं! आपको मैं लज्जित कर रहा हूँ। क्षमा कीजिये। मैं कुछ सोच रहा था।
प्रेमलता––यही आज न जाने की बात! वाह; तब तो अच्छा होगा। ठहरिये––दो-एक दिन!
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