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एक घूँट

झाड़ूवाले की स्त्री––अत्यन्त कठोर अपमान! भयंकर आक्रमण! स्त्री होने के कारण मैं कितना सहती रहूँ। सत्ताईस रुपये के सितार के लिये कहना विष हो गया। विष! (कान छूती है) कानों के लिये फूल नहीं––(हाथों को दिखाकर) इनके लिये सोने की चूड़ियाँ नहीं माँगती। केवल संगीत सीखने के लिये एक सितार माँगने पर इतनी विडम्बना––(रोने लगती है)

सब लोग––(झाड़ूवाले से सक्रोध) यह तुम्हारा घोर अत्याचार है। तुम श्रीमती से क्षमा माँगो। समझे?

झाड़ूवाला––(जैसे डरा हुआ) समझ गया। (अपनी स्त्री से) श्रीमतीजी, मैं तुमसे क्षमा माँगता हूँ। और, कृपाकर अपने लिये, तुम इन लोगों से सितार के मूल्य की भीख माँगो। देखूँ तो ये लोग भी कुछ...........

रसाल––(डाँटकर) तुम अपना कर्त्तव्य नहीं समझते और इतना उत्पात मचा रहे हो!

झाड़ूवाला––जी, मेरा कर्त्तव्य तो इस समय यहाँ झाड़ू लगाने का है; किन्तु आप लोग यहाँ व्याख्यान झाड़ रहे हैं। फिर भला मैं क्या करूँ। अच्छा तो अब आप लोग यहाँ से पधारिये, मैं (झाड़ू देने लगता है! सब रूमाल नाक से लगाते हुए एक स्वर से 'हैं हैं हैं' करने लगते हैं)

आनन्द––चलिये यहाँ से!

झाड़ूवाला––वायुसेवन का समय है। खुली सड़क पर, नदी

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