झाड़ूवाला और उसकी स्त्री कलह करती हुई आ जाती है। सब लोग उन दोनों की बातें सुनने लगते हैं)
झाड़ूवाला––(हाथ के झाड़ू को हिलाकर) तो तेरे लिये मैं दूसरे दिन उजली साड़ी कहाँ से लाऊँ? और कहाँ से उठा लाऊँ सत्ताइस रुपये का सितार! (सब लोगों की ओर देखकर) आप लोगों ने यह अच्छा रोग फैलाया।
मन्त्री––क्या है जी!
झाड़ूवाला––(सिसकती हुई अपनी स्त्री को कुछ कहने से रोककर) आप लोगों ने स्वास्थ्य, सरलता और सौन्दर्य का ठेका ले लिया है; परन्तु मैं कहूँगा कि इन तीनों का गला घोंटकर आप लोगों ने इन्हें बन्दी बनाकर सड़ा, डाला है, सड़ा, इन्हीं आश्रम की दीवारों के भीतर! उनकी अन्त्येष्टि कब होगी?
रसाल––तुम क्या बक रहे हो?
झाड़ूवाला––हाँ, बक रहा हूँ! यह बकने का रोग उसी दिन से लगा जिस दिन मैंने अपनी स्त्री से इन विषभरी बातों को सुना! और सुना अरुणाचल-आश्रम नाम के स्वास्थ्य-निवास का यश। स्वास्थ्य, सरलता सौन्दर्य के त्रिदोष ने मुझे भी पागल बना दिया। विधाता ने मेरे जीवन को नये चक्कर में जुतने का संकेत किया। मैंने सोचा कि चलो इसी आश्रम में मैं झाडू लगाकर महीने में पन्द्रह रुपये ले लूँगा और श्रीमतीजी सरलता का पाठ पढ़ेंगी। किन्तु यहाँ तो...
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