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एक घूँट


है? डर उत्पन्न करना! विभीषिका फैलाना! जिससे स्निग्ध गम्भीर जल में, अबोधगति से तैरनेवाली मछली-सी विश्वसागर की मानवता चारों ओर जाल-ही-जाल देखे, उसे जल न दिखाई पड़े; वह डरी हुई, संकुचित-सी, अपने लिये सदैव कोई रक्षा की जगह खोजती रहे। सब से भयभीत, सब से सशंक!

रसाल––अब मेरी समझ में आया!

वनलता––क्या!

रसाल––यही कि हम लोगों को शोक-संगीतों से अपना पीछा छुड़ा लेना चाहिये। आनन्दातिरेक से आत्मा का साकारता ग्रहण करना ही जीवन है। उसे सफल बनाने के लिये स्वच्छन्द प्रेम करना सीखना-सिखाना होगा।

वनलता––(आश्चर्य से) सीखना होगा और सिखाना होगा? क्या उसके लिये कोई पाठशाला खुलनी चाहिये?

आनन्द––नहीं पाठशाला की कोई आवश्यकता इस शिक्षा के लिये नहीं है। हम लोग वस्तु या व्यक्ति विशेष से मोह करके और लोगों से द्वेष करना सीखते हैं न! उसे छोड़ देने ही से सब काम चल जायगा।

प्रेमलता––तो फिर हम लोग किसी प्रिय वस्तु पर अधिक आकर्षित न हों––आपका यही तात्पर्य है क्या!

(आनन्द कुछ बोलने की चेष्टा करता है कि आश्रम का

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