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एक घूँट


-ना नहीं निकला; क्योंकि जिसकी कृपा से खोपड़ी चँदुली हो गई थी उसी का डर गला दबाये था।

रसाल––(निश्वास लेकर वनलता की ओर देखता हुआ) तब तुमने स्वीकार कर लिया?

चँदुला––हाँ, और लोगों के आनन्द के लिये।

आनन्द––(आश्चर्य्य से) आनन्द के लिये?

चँदुला––जी, मुझे देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं। सब तो होते हैं, एक आप ही का मुँह बिचका हुआ देख रहा हूँ। मुझे देखकर हँसिये तो! और यह भी कह देना चाहता हूँ कि उसी विज्ञापनदाता ने यह गुरु भार भी अपने ऊपर लिया है––बीमा कर लिया है कि कोई मुझे चपत नहीं लगा सकेगा। आप लोग समझ गये। यह मेरी कथा है।

आनन्द––किन्तु आनन्द के लिये तुमने यह सब किया! कैसे आश्चर्य्य की बात है? (वनलता को देखकर) यह सब स्वच्छन्द प्रेम को सीमित करने का कुफल है, देखा न?

चँदुला––आश्चर्य्य क्यों होता है महोदय! मान लिया कि आपको मेरा विज्ञापन देखकर आनन्द नहीं मिला, न मिले; किन्तु इन्हीं पन्द्रह दिनों में जब मेरी श्रीमती हार पहनकर अपने मोटे-मोटे अधरों की पगडंडी पर हँसी को धीरे-धीरे दौड़ावेंगी और मेरी चँदुली खोपड़ी पर हल्की-सी चपत लगावेंगी तब क्या मैं

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