व्यक्ति के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जानते उन्हीं के सिर पर परिचय देने का भार लाद दिया जाता है।
(सब लोग वनलता को असन्तुष्ट होकर देखने लगते हैं, और वह अपनी स्वाभाविक हँसी से सबका उत्तर देती है और कहती है)––अस्तु, कविजी, आगे फिर.........(सब हँस पड़ते हैं)
रसाल––अच्छा, मैं भी श्रीआनन्दजी का परिचय न देकर आपके सन्देश के सम्बन्ध में दो-एक बातें कहना चाहता हूँ; क्योंकि आपका सन्देश हमारे आश्रम के लिए एक विशेष महत्त्व रखता है। आपका कहना है कि...(रुककर सोचने लगता है)
मुकुल––कहिये कहिये।
रसाल––कि अरुणाचल-आश्रम इस देश की एक बड़ी सुन्दर संस्था है, इसका उद्देश बड़ा ही स्फूर्तिदायक है। इसके आदर्श वाक्य, जिन्हें आप लोगों ने स्थान-स्थान पर लगा रक्खे हैं, बड़े ही उत्कृष्ट हैं; किन्तु उन तीनों में एक और जोड़ देने से आनन्दजी का सन्देश पूर्ण हो जाता है––
स्वास्थ्य, सरलता और सौन्दर्य्य में प्रेम को भी मिला देने से इन तीनों की प्राण-प्रतिष्ठा हो जायगी। इन विभूतियों का एकत्र होना विश्व के लिये आनन्द का उत्स खुल जाना है।
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