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एक घूँट

एक घूँट का प्यासा जीवन––
निरख रहा सबको भर लोचन।
कौन छिपाये है उसका धन––

कहाँ सजल वह हरियाली है।

(गान समाप्त होने पर एक प्रकार का सन्नाटा हो जाता है। संगीत की प्रतिध्वनि उस कुञ्ज में अभी भी जैसे सब लोगों को मुग्ध किये है। वनलता सब लोगों से अलग कुंज से धीरे-धीरे कहती है)

वनलता––कुछ देखा आपने!

कुंज––क्या!

वनलता––हमारे आश्रम में एक प्रेमलता ही तो कुमारी है। और यह आनन्दजी भी कुमार ही हैं।

कुंज––तो इससे क्या!

वनलता––इससे! हाँ, यही तो देखना है कि क्या होता है। होगा कुछ अवश्य। देखूँ तो मस्तिष्क विजयी होता है कि हृदय! आपको.........

कुंज––(चिन्तित भाव से) मुझे तो इसमें......जाने भी दो, वह देखो रसालजी कुछ कहना चाहते हैं क्या? मैं चलूँ।

(दोनों आनन्दजी के पास जाकर खड़े हो जाते हैं।)

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