आनन्द––हाँ हाँ, उस नियमबद्ध प्रेम-व्यापार का बड़ा ही स्वार्थपूर्ण विकृत रूप होगा। जीवन का लक्ष्य भ्रष्ट हो जायगा।
प्रेमलता––(आश्चर्य्य से) और वह लक्ष्य क्या है?
आनन्द––विश्व-चेतना के आकार धारण करने की चेष्टा का नाम 'जीवन' है। जीवन का लक्ष्य 'सौन्दर्य्य' है; क्योंकि आनन्दमयी प्रेरणा जो उस चेष्टा या प्रयत्न का मूल रहस्य है, स्वस्थ––अपने आत्मभाव में, निर्विशेष रूप से––रहने पर सफल हो सकती है। दृढ़ निश्चय कर लेने पर उसकी सरलता न रहेगी, अपने मोह-मूलक अधिकार के लिये वह झगड़ेगी।
प्रेमलता––किन्तु अभी-अभी आपने नदी-तट पर जाल की कड़ियों को आपस में लड़ाते हुए मछुओं की बातें सुनी हैं। वे न-जाने.........
आनन्द––सुनी है। आनन्द के सम्बन्ध में पहले एक बात मेरी सुन लो। आनन्द का अन्तरङ्ग सरलता है और बहिरंग सौन्दर्य्य है, इसी में वह स्वस्थ रहता है।
प्रेमलता––किन्तु आपकी ये बातें समझ में नहीं आती।
आनन्द––(हँसकर) तो इसमें मेरा अपराध नहीं। प्रायः न समझने के कारण मेरे इस कथन का अर्थ उलटा ही लगाया जायगा, या तो पागल का प्रलाप समझा जायगा। किन्तु करूँ क्या, बात तो जैसी है वैसी ही कही जायगी न! उन मछुओं को
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