रहता? जिससे तुलना करके तुम कटुता का अनुभव करती हो।
प्रेमलता––हाँ, ऐसा ही तो समझ में आता है।
आनन्द––तो इससे स्पष्ट हो जाता है कि पवित्र हृदय-मन्दिर में दो––कटु और मधुर––भावों का द्वन्द्व चला करता है, और उन्हीं में से एक दूसरे पर आतंक जमा लेता है।
प्रेमलता––लेता है; किन्तु, यह बात मेरी समझ में......
आनन्द––(हँसकर) न आई होगी किन्तु तुम उस द्वन्द्व के प्रभाव से मुक्त हो सकती हो। मान लो कि तुम किसी से स्नेह करती हो (ठहरकर प्रेमलता की ओर गूढ़ दृष्टि से देखकर) और तुम्हारे हृदय में इसे सुचित करने.......व्यक्त करने के लिये इतनी व्याकुलता..........
प्रेमलता––ठहरिये तो, मैं प्यार करती हूँ कि नहीं, पहले इसपर भी मुझे दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिये।
आनन्द––(विरक्ति प्रगट करता हुआ) उँह, दृढ़ निश्चय को बीच में लाकर तुमने मेरी विचार-धारा दूसरी ओर बहा दी। दृढ़ निश्चय! एक बन्धन है। प्रेम की स्वतंत्र आत्मा को बन्दीगृद में न डालो। इससे उसका स्वास्थ्य, सौन्दर्य्य और सरलता सब नष्ट हो जायगी।
प्रेमलता––ऐं! (और भी कई व्यक्ति आश्चर्य्य से) ऐं!
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