पहले एस सरफ देखो। तुम्हारे धर्म के कमजोर खम्भे ऐसे ही पेशे नाम मात्र के साधु हैं। इसलिए माइयो-
पहले अपने आप को बलवान करना चाहिए ।
तष पराये गेह में प्रस्थान करना चाहिए ।
(गेपथ्य से )-रूपी महामा, गुरूजी महाराज ।
माधो०--बच्चा गङ्गादास, देख सो थाहर जाके कौन पुकारता है।
माधो०--(स्वागत) अब यह बचा पाठ पढ़कर ठीक बन गया है, गुरू भी की खूष सेवा करेगा ।
गङ्गा०--(पास जाभर माशोधास से) गुरूजी महाराज, एक गुप्त बात है । गुप्तवाणी के अक्षरों में कहता हूं।
माधो०--कहो कहो जल्दी कहो बच्चा, क्या बात है ?
गडा०--एक रामप्रिया मी आयी है। (राम प्रिया का माम हम कर मानोदास का प्रसन्न होना)
माघो०--अच्छा तो तू यही ठहर, मैं अभी उसको राम उपदेश जी देकर पाता हूं। (माता है) ।
गौरी०--(स्वागत )यही समय है किइगाराम को उद्या और अपने शैव अखाड़े की भार ले जाऊ । (प्रकट ) क्यों थे ! उस रोज तो तू माग आया था अम कहाँ जायगा ?
गङ्गा०--(आश्चर्य से) हैं वैष्णपेश में तुम गौरीगिरि नाग- वाले शैव हो?
गौरी०--हां, हम वही हुम्हारे सिस्तोड़ औषद हैं । (गङ्गालास को पाने के लिए पटना है)