पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/९२

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गौरीगिरि०--(स्वागत) यही है, वह गङ्गाराम नामवाला बालक यही है। वैष्णवों के अखाड़े से इसे उबालेमाने ही के वास्ने इस गौरीगिरि ने भाज गौरीदास का वेश बनाया है। (प्रकट) जय सीताराम सन्तो अय सीताराम ।।

माघो०--जय सीताराम, बच्चा जय सीताराम । बैठो भक्त- राज, आजसे हमारे प्यारे शिष्य जी श्रीगङ्गादास जी श्रीरामपण. जी का भीसत्संग जी सीखेंगे। तुम भी सुनो।

गोरी०--जो आज्ञा ।

(ध्यान मग्न होकर माला जपने लग जाता है।)

माघो०-

नमप्रदेशमाछाद्य घनाः गर्जन्ति निष्ठुराः ।
एतत्काले पुाहीनं क्लेशमाप्नोति मे मनः ॥

बेटा यह कीचकन्धा काण्ड के आगे की कथा है। नवाजी. में वाहिका नाम का एक पहाड़ है। वहाँ भीषम जी जब पहुंचे तो बरसात जी प्रारम्भ होगी। उस समय घन नाम के वानर सं श्रीरामचन्द्र जी ने कहा कि भाई घना, नभ कहिए श्राकाश सो निष्ठर होकर गरज रहा है। ऐसे समय में मेरा मन पुश्रा के. बिना क्लेश को प्राप्त होरहा है। वर्षा में राम जी का मन गरम गरम पुआ खाने को चाहने लगा था । पन में पुआ मिले. नहीं, सोई क्लेश होता भया-समझा बच्चा गङ्गादास ?

गडा०--समझा गुरुजी ।

माधो०--

तथाऽखितेषु मेधेषु पञ्चला चञ्चलायते ।
शैवानां दुष्टशीलानों मत्तिर्जाती यथाऽस्थिरा।।