गौरी०--देखना है तेरे अवतार को, तू नहीं मानेगा?
गङ्गाराम--हर्गिज नहीं।
गौरी०--मार डाला जायगा।
गङ्गाराम--पर्वाह नहीं।
आयेगा किस काम यह देह अन्म और प्रान।
नवजीवन है--धर्मपर, हो जाना बलिदान।।
भोला०--पकड़लो।
गङ्गाराम--खबरदार।
गौरी०--तेरा यहाँ कौन मददगार है।
गङ्गाराम--वह विष्णु, जो सारी सृष्टि का रचनहार है।
भोला०--अच्छा तो इसके विष्णु को देखना है। भैया गौरीगिरि, फाड़ो इसके मुंह को। ठूंंसो इसमें चिलम।
कृष्णदास--(मेपथ्य मे) ठहरो खबरदार!
भोला०--अरे वैष्णव दल आरहा है। जल्दी से इसकी कंठी तोड़ो।
गङ्गाराम--अरे बचाओ, बचाओ, मुझे इन धूतों से बचाओ।
कृष्ण--बेटा न घपराओ।
भोला०--भागो भैया, गौरीगिरि, यहाँ हम तुम दो ही हैं, उधरसे चारभादमी आरहे हैं। फिर कभी निबट लेंगे। जबरदस्ती किसी का धर्म बदलने में भी गुनाह है। (दोनों का जाना)
[कृष्णदास और महन्त माधोदास का पाना]
कृष्ण०--बेटा तुम कौन हो।
गाङ्गा०--एक पतित वैष्णव।
कृष्ण०--प्रतित? पतित कैसे?