पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/६८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५१ )

चित्र०--अजी, आपकी कला के भागे हम क्या हैं खाक ? खैर, यह मनोरजन जानेदीजिये और यह पताइये कि राजकुमार अनिरुद्ध को वहां किस प्रकार पहुंचाया जाय ? सुदर्शनचक्र जो उनका पहर दार है उसे किस प्रकार उस जगह से हटाया जाय !

नारद--अरे, तुम जैसी स्त्रियों के लिये तो यह सब बायें हाथ का खेल है। नारद इसमे क्या बताये :-"स्त्रीचरित्र पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्यः।

चित्र०--महाराज यह ठठोली का समय नहीं है।

नारद--अच्छा तो सुनो, यहकाम करना ही है तो तुम अनिरुद्ध की माता रानी रुक्मावती का रूप बनाओ,और सुदर्शन को जाकर यह हुक्म सुनायो कि नारदजी तुम्हें बुलारहे हैं। :-

ठीक जो कम्पा लगा तो होगा तोता हाथ में ।
वरना नारद भी बंधेगा व्याधिनी के साथ में॥

चित्र०--धन्य है, धन्य है, मुनिराज ! आपको धन्य है। आपने अति उत्तम उपाय सोचा है।

नारद--अच्छा तो जाओ, अब रात अधिक नहीं रही है। बहुत थोड़ा समय है । सब काम अति शीघ्र कर डालो !

चित्र०--जो आज्ञा महाराज।

[चलीजाती है]
 

नारद--चलनेदो यह सब जो कुछ होरहा है होने दो । वैष्णव और शैव का मगडा मिटाने का यही एक उपाय है कि जिस प्रकार भी हो अनिरुद्ध और ऊषा का विवाह करादिया जाय । चल--नारद-रात भर के लिए कहीं गायब होजा ।

____०____