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पार्वती के विना महेश्वर की महिमा अपार है। पृथ्वी के बिना जल बेकार है। ज्योति के बिना नेत्रमें अंधकार है । विद्या के बिना बड़े से बड़ा मनुष्य गंवार है।-

नारि जाति ही सृष्टि में, होती गुण-भाण्डार ।
इसीलिये तो सृष्टि भी, कहलाती है नार ।।

दूसरा दर्वारी--यथार्थ है।

वाणासुर--पुरुष स्वभावतः इतना स्वार्थी है कि एकबार पाणिग्रहण करलेने पर भी दूसरा विवाह करलेता है। किंतु नारी अपने पति का शव जल जाने के बाद भी जीवन पर्यन्त विवाह करना तो एक ओर किसी दूसरे पुरुष का विचार तक मन में लाना घोर पाप समझती हैं। पुरुष ऐसा अधम है कि वह प्रत्येक समय नारी को अपने प्रामोद की सामग्री समझता है। परन्तु नारी पतित अवस्था में रहने पर भी पुरुष की मनोवृत्ति का संभालना अपना कर्तव्य समझती हैं।-

नारी ही पुरुषो को रण में वीर बनाया करती है।
नारी ही दुख के अवसर पे धीर धराया करती हैं॥
पुरुषों ही की सेवा में सब जन्म बिताया करती हैं।
खुद तकलीफ़ उठाकर उनको सुख पहुचाया करती हैं॥

[पुरोहित जी का आना]
 

पुरोहित--जय, जय, शोणितपुराधीश महाराज की जय, ग्रजराजेन्द्र श्री वाणासुर महाराज की जय।

वाणासुर--आइये, भाइये, शुक्लजी महाराज आइये । कहिये कन्या कैसी है ?