पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/४०

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वाणासुर--यह ठीक है, परन्त महाशय, पुत्र क्या पराया नहीं होता है ? पुत्र की दृष्टि सदैब पिता के धन पर रहती है ! पिता के राज पर, पिता के ताजपर, पिता के मानपर, पिता की शान पर रहती है । परन्तु पुत्री । पुत्री केवल प्रेम ही की चाहना रखती है । प्रेमही की निस्वार्थ कामना रखती है:--

बेटे की भांति वह न सताती है बाप को ।
होके बड़ी न आँख दिखाती है बाप को।
जीवन में भुलाती है नहीं याद बापकी ।
सुसराल में भी रखती है मर्याद बापकी ।।

दूसरा दरबारी--श्री महाराज ठीक कह रहे हैं।

वाणासुर--अश्वपति के नाम को विख्यात करने वाली सावित्री कौन थी?

सब दरबारी--कन्या।

वाणासुर--राजर्षि जनक के नाम को यश देनेवाली जानकी कौन थी?

सब दर्बारी-कन्या !

वाणासुर--गिरराज हिमाचल की शान ऊंची करनेवाली कौन है ?

सब०--भगवती पार्वती।

वाणासुर--नरराज द्रुपद का नाम अमर करनेवाली कौन है ?

सब०-महारानी द्रौपदी।

वाणासुर--तो बस समझलो कि कन्या की पदवी कितनी ऊंची है। जिस जाति ने नारी का आदर नहीं किया है वह कभी ऊपर को नहीं उठी है। यह सारी सृष्टि ही नारी रूप है। भगवती