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( २१ )
पांचवां दृश्य
(वाणासुर का दखार)
["ऊषा का जन्म होचुका है, उसके “जन्मोत्सव की धूम धाम होरही है]
गाना
गायिकायें--
हाँ गानो बधाई, कन्या आई, रोजमहल में श्राज ।
हिलमिल के चलो सब नारी, हाथन मैं लै लै थारी ।
सन्तान को घड़ी है, खुशी बढ़ी चढ़ी है ।
साजो साज समाज । हां-गाओ बधाई० ॥१॥
पुर में है आज श्राह्लाद, पाया है उमा का प्रसाद ।
सब देउ मुबारिकबाद । हाँ-गानो वधाई० ॥२॥
एक दर्षारी--[आगे बढकर]
घड़ी आजकी धन्य है, भरी राज की गोद ।
कन्या जन्मी महल में, घर घर छाया मोद ॥
दूसरा दर्वारी:--
नभ पृथ्वी सब गा रहे, विविध वधाई आन ।
चन्द्रकला जैसी बड़े, राजसुत्ता की शान ॥
वाणासुर--(स्वगत) अहा! कन्या, कन्या ! कितना प्यारा शब्द है ! यह शब्द आजही नहीं उसी दिन से प्यारा मालूम हो रहा है, जिसदिन कि श्री पार्वती जी ने इसका प्रसाद दिया था।