पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/३६

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दूसरा वैष्णव--संगठन आति का प्राण है।

तीसरा वैष्णव--संगठन मनुष्य का आधार है।

चौथा वैष्णव--संगठन के बिना सृष्टि का संहार है ।

कृष्णदास--संगठन का तत्त्व समझना हो तो जल के बिन्दुओं से पूछो । एक एक विन्दु मिलकर जब नदी बनजाती है तो बड़े से बड़े पर्वत को बहादेती है। संगठन की शक्ति जानना हो तो आग की चिनगारियों से पूछो । एक एक चिनगारी मिलकर जब प्रचण्ड ज्वाला बनजाती है। तो बड़े से बड़े राजमहल को जलादेती है, संगठनका बल देखना हो तो प्रकाश की किरणोसे पूछो । एक एक किरण मिलकर जब तीन धूप का स्वरूप बनजाती है तो ऊचे से ऊंचे हिमशिखर को पिघला देती है।

एक वैष्णव--श्रीमान् का कथन सत्य है।

कृष्णदास--बोलो, अपने बच्चों की रक्षा करना मंजर है ?

सब--हाँ,

कृष्णदास--अपनी माताओं और बहिनों की रक्षा करना मंजूर है ?

कृष्णदास--तो आयो भाइयो, धर्म के नाते, जाति के नाते, और देशके नाते, पांव जमाकर, सिर उठाकर, छाती खोलकर, राक्षसों की शक्ति को चकनाचूर करने के लिये शोणितपुर के मस्तक पर संगठन की शहनाई बजाओ, और वैष्णव दल को विजयनाद सुनाछो--

करो तुम संगठन ऐसा कि जिससे जगमें विस्मय हो ।
करो तुम संगठन ऐसा कि जिससे जाति निर्भय हो ।