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शान्तिरस का उदाहरण श्रीकृष्ण जी के उन उत्तरों से मिलता है जो उन्होंने बलराम, रुक्मिणी और रुक्मवती को दिए हैं।
चित्रलेखा का आकाशमार्ग से उड़ना, अनिरुद्ध-भवन में प्रवेश करना और अनिरुद्ध को ऊषा के राजभवन में लाना अद्भुत रसका उदाहरण है।
यद्यपि नाटक के दोष तो नाट्यकार ही समझ सकता है, परन्तु इस विषय की कुछ बातों पर दर्शकों को भी मत देने का अधिकार है। इस दृष्टि से विचार किया जाये तो नाटक में कुछ त्रुटियाँ हैं। यह नाटक रंग भूभि पर खेले जाने के निमित्त रचा गया है, परन्तु यह लम्बा इतना है कि दर्शकों की जागरण-शक्ति को थकानेवाला है। माधोदास की बातचीत साधारण दर्शक वृन्द की समझ से बाहर है। जिन्हें अब भी हिन्दी भाषा जानने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है, उनके लिए तो 'शोणित-पुराधीश' और 'मंजूषा' आदि शब्दों का समझना कठिन होगा।
नाटक दृश्य काव्य है। वह सीन सीनरीसे लोगों में पास होता है। यदि ऐक्टर अच्छा गाते हों, शुद्ध उच्चारण करते हों और भावों को ठीक प्रकार से दिखलाते हों, तो साधारण नाटक भी दर्शकों की दृष्टि में अच्छा जचेगा। पर नाटक की उत्तमता की कसौटी यह नहीं है। उत्तम कोटिका नाटक वही है जिसमें उच्च विचारों और उन्नत भावों का समावेश हो, और मनुष्य के हृदय में जिनके पढ़ने से एक बार तो उथल पुथल मच जाय और उसकी आंखों के सन्मुख आदर्श के पालन और पाप के दुष्परिणाम का पूरा पूरा चित्र खिंच जाय।
हर्ष की बात है कि लेखक ने इस नाटक के लिखने में बहुत अंशों में सफलता प्राप्त की है।
हमें आशा है कि भविष्य में भी ऐसे ही नाटक स्टेज पर आकर जनता के ज्ञान की वृद्धि करेंगे और हिन्दी साहित्य का भंडार भरेंगे।
बरेली। | छैलबिहारी कपूर बी॰ ए॰। |
१८-६-१९२५, |