पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१३६

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बलराम--ठहरजा, दुष्ट ठहरजा:--

तल्वार उठा करके न बढ़ बाल के भागे।
लड़ना है तो लड़ भाके तू इस काल के धागे ।

बाणा०--[आश्चर्य से] हैं ! तुमलोग यहाँ कैसे आगये ?

बल०--जैसे पुराने मकान के छिद्रों में होकर सूर्य की धूप आजाती है, उसी प्रकार तेरे पापों से कमजोर होजानेवाले किले में प्रवेश करके आज यादवों की सेना अपना जयघोष सुनाती है ।

वाणाo--तो मेरे सब शैव वीर कहाँ हैं १ अर धूम्राक्ष ! (वैष्णव वेष में धूम्राक्ष का पाना ) हैं ! तेरे मस्तक पर वैष्णष तिलक ? पिंगाक्ष ? (वैष्णव देष में पिंगाक्ष को मात देखकर ) हैं !तू भी वैष्णव होगया ? वज्रमूर्ति १ ( उसे भीवेष्णव वेष में देखकर ) अरे, इधर भी वैष्णव ! वक्रशक्ति । (वैष्णव वेष में देखकर ) उधर भी वैष्णव ?

बल०--हां,सब वैष्णवही वैष्णव ! बोलोवैष्णव धर्म की जय।

वाणा--कुछ पर्वाह नहीं, मैं अभी अग्निवाण द्वारा सब को भस्म किए देता हूं।

[वरण चढाना और उसीसमय सीन बदलकर गरुड पर कृष्ण भगवान् का आना अनिरुद्ध के नागपास के बंधन खुलजाना]

श्रीकृ०--अधर्मी वाणासुर तेरे पापका आज अंत है। इसीलिए इससमय यहाँ भयंकर भूकंप होगा।

वाणा०--भूकंप होता है तो होने दो ! प्रलय भी होता हो तो होजाने दो। तुम यदि अनिरुद्ध के सहायक हो तो मेरा