गाना
उसी का जीवन है धन्य जगमें, जो सेवा व्रतमें लगा हुआ है।
सिखाया दुनियाको धर्म उसने, जो धर्मपै खुद मिटाहुना है।
उसीका है तेज नभ के ऊपर, उसीका सप भूमि के है भीतर ।
सदा जो परमार्थ की अनल में, सुवर्ण जैसा तपा हुआ है।
जिया है जो दूसरोंकी खातिर, मरा है जो दूसरोकी खातिर ।
अमर सदा है वह इस जगत में, जगल उसीपर खड़ा हुआ है ॥
जहाँ के तख्ते पै नाम उसका, सदैव स्वर्णाक्षरों में चमका ।
असत पै जिसने कदम न रक्खा,सदो जोसतपर डटा हुआ है।
उसीने पाया है उस सुधा को, वही रिझाता है देवता को ।
मिटाई है जिसने अपनी रगत, अमिट के रङ्ग में रंगा हुआ है ॥
समान है हर्ष, शोक उसको, है एकसे दोनों लोक उसको ।
लगाके लौ 'राधेश्याम' प्रभुमें, सदा को जो टहलुबा हुआ है ॥
दृश्य तीसरा
(कारागार)
(अनिरुद्ध का नागपाश में बॅधेहुए रिखाई देना)
अनिरुद्धः-(स्वगत)
विधना कहां हुमा है, आकर मेरा ठिकाना ।
पिंजड़े में लाया मुझको, मेराही चहचहाना ।।