पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१३

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वाणासुर यह बात किसी प्रकार भी नहीं सह सकता कि उसकी कन्या किसी वैष्णव के साथ विवाही जाय। इसी निमित्त वह ऊषा को कैद करने की प्रतिज्ञा करता है, और अन्त में वह अनिरुद्ध को मारडालने का प्रयत्न रचता है। वह महादेव जी का अनन्य भक्त है, इस कारण उनकी आज्ञा उल्लंघन नहीं करता। शिव जी के समझाने पर कि 'हरी हर दानों एक समान' वह वैरभाव को त्यागकर अपनी कन्या अनिरुद्ध कुमार के साथ ब्याह देता है।

नाटकका तीसरा मुख्य पात्र अनिरुद्ध है। चित्रलेखा द्वारा वह आकाशमार्ग से ऊषा के महल में लाया जाता है। जागने पर वह अपने आपको बिलकुल नये स्थान में पाता है। ऊषाकी ओर दृष्टि पड़ते ही उसके हृदय में 'Love at first sight' प्रेम का भाव सहसा उदय होता है।

Dead shepherd! now I find thy saw of might,
Who ever loved, that loved not at first sight?

(As you like it.)

वह केवल कोरा प्रेमी ही नहीं है, बल्कि क्षत्रिय वीर है। उसके यह शब्द कि "मौत का ख़याल उन्हें होता है जो दौलत के कुत्ते हैं, हिर्स और हविस के बन्दे हैं" भली भाँति उसके आन्तरिक भावों को प्रकट करते हैं। अन्त में मनोवाँछित प्रिया ऊषा के साथ उसका विवाह होता है।

उग्रसेन उन राजाओं में से हैं, जिनके हृदय में प्रजाके सुख का विचार सर्वोपरि है। वे अपने भोग विलास में समय बिताना और प्रजा की सुध न लेना राजकीय कर्त्तव्य के विरुद्ध समझते हैं। उनमें क्रोध नहीं है। अनिरुद्ध के महल से ग़ायब होने की बातका वह पता तो चलाते हैं, परन्तु बड़ी सावधानी से। उन्हें अपने पुत्र पौत्र से उतना ही स्नेह है जैसा कि एक वृद्धको होना चाहिये। वह कृष्ण के प्रति अपना विशेषानुराग इस कारण दिखलाते हैं, क्योंकि कृष्ण सुख दुःख में समान हैं।

भगवान् कृष्ण का सुदर्शन चक्र अनिरुद्ध के शयनागार का पहरेदार है। सुदर्शन स्वामिभक्त और कर्तव्यपरायण है। जहाँ पर उसे नियुक्त कर दिया जाय, वहां से वह हटता नहीं है।