पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१२८

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गुरु की भी सेवा करनी चाहिए । क्योंकि गुरु सेवा भी जोहेसो त्रियों का मुख्य धर्म है।

गङ्गा--सतयुग और त्रेतामें तो पति सेका ही प्रधान रहती है, किन्तु द्वापर और कलियुग में गुरु सेवा. प्रधान होजाती है !

महंत--(गङ्गादास से) अरे चुपरह अज्ञान ! विघ्न डाले चला आता है (स्त्रियों से) हाँ, तो गुरु के लिए तो वेदों में जोहेलो ऐसा लिखा हुआ है-

गुरू स्वामी गुरू विष्णू गुरू देवो जनार्दनः ।
गुरू साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥

अर्थात् स्त्रियों का स्वामी कोई है तो गुरू है, और मुख्य देवता कोई है तो वह भी गुरु है। यहांतक कि साक्षात् परब्रह्म भो अगर कोई है तो गुरु है। इसलिए गुरु को अपना स्वामी जानकर नमस्कार करो, और अपना तनमन धन सब गुरु संवा मे लगाओ। (सब प्रणाम करती हैं, राधा नहीं करता है)

राधा--[ स्वगत ] निःसन्देह मुझे तो यह कोई धूर्त जान पड़ता है। ऐसे ही छलछंदी लोगों ने नारी समाज को वैष्णव धर्म की बातें मनमाने ढंग से समझा कर अपना मतलब साधना और वैष्णव धर्म को बदनाम करना शुरू किया है (प्रकट ) श्री महाराज, यह किस वेद का वचन है ?

महंत--[चौंक कर राधा की तरफ़ देखते हुए स्वगत] अब"आई मुश्किल बच्चा माधोदास, इसके प्रश्न का ठीक उत्तर नहीं दिया गया तो अभी सब पोल खुल जायगी। (प्रकट) धन्य माई धन्य, मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि तुम धर्मशारत्र की