पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१११

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अनि०--मौत का स्त्रयाल ? मौत का खयाल उन्हे होता है ओ दौलत के कुत्ते हैं, हिर्स और हविस्र के बन्दे हैं । सच्चे योद्धा और सच्चे धर्म-सेवक को मौत का नहीं विजय का और परमात्मा का खयाल रहता है।--

एक दिन सब हैं इसी मग से गुजरनेवाले ।
मौत से डरते नहीं मौत से मरनेवाले ।।

वाणा०--पर तुझे तो मौत से नहीं बेमौत मारना है ।

आनि०--यह तुम्हारा खयाल है। कोई बेमौत नहीं मरता है। जो मरता है यह अपनी मौत से मरता है। शोणितपुराधीश, मैं तुमसे एक बात पूछता हूं।

वाणा०--पूछो ?

अनि०--क्या तुम कभी नहीं मरोगे ? हमेशा जीते ही रहोगे ? भरे ग्राफिज मुसाफिर, यादरखः--

क्यों झगड़ता है तू इसके और उसके वारत !
भाज मेरे वास्ते तो कल है तेरे वास्ते ।।

बाणा--अरे तू यह नहीं जानता है कि मैं राजा हूं ?

अनि०--राजा है तो क्या अमर होकर पाया है ?-

यह है तेरा अंधपन, अज्ञान है, अविवेक है।
मौत के नीचे रिआया और राजा एक है।।

देख, रावण भी एक राजा था, तुमसे बढ़ा चढ़ा राजा

था, परन्तु अत्याचार के कारण मृत्यु क बाद भी लोग उसे धिक्कारते हैं, राक्षस के नाम से पुकारते हैं। गवण का बल और उसका विस्तृत राज्य और अरत में इसका सर्वनाश, भविष्य