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सुनो, मै आज रात्रि को अपने पिता के पास जाकर गिड़गिड़ाऊगी। वे इस राज के प्रधान मंत्री है, उनकी कृपा से व्योमयान माँग लाऊंगी।

ऊषा--फिर ?

चित्र०--उसपर तुम्हे बिठाऊंगी।

ऊषा--और ?

चित्र०--प्राणाधार के पास--एकडंडी महल मे--पहुंचाऊगी।

ऊषा०--उपकार, तब तो तेरा अनन्त उपकार होगा-

पहले भी तूमे ही नहलाया है उस जलधार में ।
अब भी पहुंचायेगी तूही मुझको उस दरवारमें ।।

गाना

कोई प्रीतम का दरस दिखाय दो रे।
पिड पिउ की रट करे पपीही, हे घन प्यास बुझाय दो रे।
ओ चाहते हैं तुम्हारी ही चाह करते हैं ।
जो देखते हैं तुम्हीं पर निगाह करते हैं।
तुम्हारे तालिचे दीदार अाह करते हैं।
तुम्हारे वास्ते इतना गुनाह करते हैं ।
तुम्हारी राह में खुद को तबाह करते है।

बिछुड़ रहा बिरहिन का जोड़ा.विधना देग मिलाय दो रे ।

[दोनों का चले जाना]
 

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