कुण्डल पहने, पटका डाले वंशीवाले भाते हैं।
उजियाला अब होजायेगा जग उजियाले आते हैं।
उग्र०--आइये, आइये, मदनमोहन जी आहये । आपने रात, की घटना सुनी है ?
श्रीकृष्ण--हां सुनी है।
उग्र०--फिर उसका कुछ उपाय भी किया है ?
श्रीकृष्ण०--प्रद्युम्न को इस बात का पता लगाने के लिये मुकर र करदिया है।
बलराम--और तुमने ? वंशीवाले तुमने ? तुमने आप इस घटना पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया है ?
श्रीकृष्ण--अनिरुद्ध यादववंश का वीर बालक है। कौन उसे धोखा देकर तकलीफ पहुंचा सकता है ? उसकी वीरता पर भरोसा करके ही मैं निश्चिन्त हूँ।
बलराम--बाहरी निश्चिन्ता, पौत्र गायब होगया और आप भब भी निश्चिन्त हैं।
उग्रसेनः--
इसे अवगुण समझते हो ? नहीं यह गुण है मोहन का ।
सुखो मे या दुखों में एक रस रहता है मन इनका ।।
बलरामः--भैया कन्हैया, आज का तुम्हारा यह शान्तरस हमें नहीं सुहाता:--
बसा ओ तुम बताओ, बहू नयन तारा कहाँ पर है ?
हमारा और तुम्हारा प्राण का प्यारा कहाँ पर है ?