यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्वितीय सर्ग लहरा (१०) चारो भ्रातानो ने उठ कर सब जन-गण को किया प्रणाम, तब नरपति बोले प्रमुदित हो वचनावलियों यो अभिराम,- "सभ्य-वृन्द, पार्यों के प्रतिनिधि, है लीलामय की यह गति-विधि, कि है पधारे आज आप सब, रहा स्नेह-क्षीरोदधि, बड़े भाग्य है जो सुत-वधुएँ हम ने ऐसी पाई है, मिथिला की लक्ष्मियाँ स्वय ये अवधपुरी म आई है । (११) आर्य-धर्म-पालन अति दुर्गम यह क्षुरस्य धारा सम है, रघुकुल राजदण्ड का धारण अति कठोर कारा सम है सुख की इन शीतल घडियो मे- इन विलासिता की लडियो मे- मोह पूर्ण अति तरल क्षणो मे कुसुमो की इन नय छडियो में आज धर्म का स्मरण, सुगुम्फन शूलयुक्त सम्मिलन महान- हम सब को करना होगा, हम कर्मनिष्ठ है धर्म-प्राण । (१२) राजकुमारो से हम कहते है-अब आप सम्हल जाएँ, धर्माचरण रहे सम्मुख,-ये भौहे कही न बल खाएँ जागरूकता जीवन-धन सत्याचरण आत्मचिन्तन निश्छल हो कर, जगज्जनो की सेवा ही, प्रभु का वन्दन है, न्याय-तुला के दोनो पलडे आठो याम समान रहे, बहिर्जगत मे, अन्तरतर मे ऐक्य भाव का ध्यान रहे । 2 ७६