पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६३२

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आम्मला वह सम्मिलन २०१' तुझ मे यह सामर्थ्य कहाँ है कि तू कर सके वह वर्णन ? तेरे बस का नही, सखी री, रोम-हेर्षण यही बहुत है कि तू आ सकी सँग-सँग इस कोसलपुर तक, बक मत अब, कर मिलन दरस तू तन मन लोचन से छक-छक, मिलन नहीं यह, अरी बावरी, है पूर्ण । 'आत्म-दर्शन, कहाँ शक्ति है कि तू कर सके इस विमुक्त रस का वर्षण ? २०२ बरसो की वह प्यास-परीक्षा, बरसो की वह हिय-तडपन,- बरसो की वेदना दिवानी, बरसो का चिन्तन -कम्पन, ५ बरसो का वह सतत प्रतीक्षित सम्मिलनोत्सुकतामय क्षण, कौन कर सके चित्रित उसको जब प्रतिपल होवे हिय-रण ? नहीं कठिन कुछ चित्रित करना विश्व-क्रान्तियो का चित्रर्ण, पर, कल्पने, असम्भव ही हैं दिखलाना हिय का स्पन्दन । ६१८