पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६०४

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जम्मिला १४५ आर्य राम की अनुपस्थिति मे हमे स्वधर्म निभाना है, राम - निदर्शित पुण्य-मार्ग से हो कर हम को जाना है, यदि हम सब है राम-शिष्य तो, सावधान हम सदा, जागरूक हम रहे निरन्तर, अलस होवे यदा-कदा, राक्षस-पति, वानर-पति, नर-पति, जग-पति राम, हमे बल दो, जिससे, प्रभु, तव विकट तपस्या भृमण्डल मे सुसफल हो। हे निर्बन्ध, बाँध कर रख ले तुमको हम इस जन-पद में, निस्सीमित को मचल-मचल हम बाँधे छोटी-सी मे, बार-बार यो उठ आते है विकल हृदय मे भाव, प्रभो, तुम जानो हो, देव, सभी कुछ, तुम से नही दुराव, प्रभो, आर्यावर्त वासियो के प्रति होगा यह अन्याय निरा, इसीलिए, 'रह जाये प्रभु, यो- कहते होती मूक गिरा।