पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

षष्ठ सर १२३ त्रेता युग के धर्म धुरन्धर पुरुषोत्तम प्रतिनिधि है राम, नारी धर्म प्रकट करता है, केवल, देवि, तुम्हारा नाम, सीता नाम अनन्त काल तक सन्निष्ठा - परिचय देगा, तव सुस्मरण,दिग्भ्रमित मन को- सन्तत अभय-निलय देगा, माता, तुमने आत्म-यज्ञ में- अपनी आत्माहुति दी है, पुण्य - आदर्श - प्रतिष्ठा तुमने इस युग मे की है । १२४ विचलित आज हो रहा है, प्रभु, अचल विभीषण का मन भी,- वह मन जिसे न चलित कर सका, नरमेधक भीषण रण भी, गत सस्मरणो का उठ प्राना, स्वाभाविक है ऐसे क्षण, स्वाभाविक ही है कि हो उठे विगत-स्मृति से विचलित मन, छोटी बातें भी बनती है पुन स्मरण मे शूल अनी, फिर उन बातो का क्या कहना, जो सलग्ना रही धनी !