पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८३

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षष्ठ सर्ग धीर, गहर, गम्भीर नीर-सा जीवन प्रबल प्रवाह बना, जिस के अन्तर मे नित गति है, शीतलता है, दाह घना, जग की प्यास बुझाना निशिदिन, शिलाखण्ड भेदन करना, ऐसे ही अटपटे काम करता है जीवन - झरना, भीतर-भीतर खूब बह रहा से समतल-सा गति मय भी है, यति मय भी है, थिर भी है, चचल-सा है। यह, जीवन सतत युद्ध है, जीवन-- गति है, है जीवन ऐसा, है प्रयत्न मय, मुजन जीवन, फिर सघर्षण - भय कैसा ? परिवर्तन - उत्क्रमण - भान है एक मात्र जीवन - लक्षण फिर विचार - कचुकी-गलित का क्यो यह समोहक रक्षण बाधाएँ अतिलघित करना, है जीवन का मन्त्र सदा, फिर क्यो सत्य-प्रचार पन्थ की विपदा को समझे विपदा ? 7