पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पष्ठ सर्ग लहराये सद्विजय पताका, इस जगती के प्रागण मे, चतुर्दिशा कल्याण-निहित हो, ध्वज के स्वस्ति शुभाकन में, असद्विचार पराजित, कुठित, भूलुठित, उन्मूलित हो, सत्यमेव विजयी हो, राजन, प्रेम-विटय फल-फूलित हो, आगे-आगे ध्वजा सत्य की, पीछे-पीछे जन -सेना, त्रेता का यह धर्म सनातन, जग को विमल ज्ञान देना। . यही करो, यह महान् आदर्श हमारा, यह सन्देश हमारा है, हमारी परम्परा है, यह विचार की धारा है, आज निमत्रण है जन - जन को, प्रायो मगल बनो सच्चिदानन्द रूप तुम, सब अपना उत्थान करो, पान करो इस त्यागामृत का, अपने बन्धन आप हरो, अपनी थाती आप सम्हालो, जग भर का सन्ताप हो।