पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

षष्ठ संग नयी, मेरा मार्ग प्रशस्त मार्ग है उस पर चलो, बनो विजयी, तव अग्रज पद-नत-लका की, भोगो श्रीसम्पत्ति रावण मरता है, पर जीवित- है मम रावणत्व का तत्त्व, ऐसा तत्त्व कि पद-पद पर जो ललकारेगा श्री रामत्त्व, लक्ष्मण, सुखी रहो, कह देना- अपने अग्रज से कि बली,- रज्जु जल चुकी थी, पर उसकी, ऐठन तब भी नही जली ।" न- 1 राजन, इन शब्दो मे प्रकटित होती है उनकी महिमा, इन शब्दो मे भरी हुई है, रावण की गौरव - गरिमा, वह अभिमान चण्ड दिन-मणिवत् जो जग मे नित तपता था,- भौतिकतावाद भयकर जिस से त्रिभुवन कंपता था,--- रावण के अन्तिम शब्दो मे है भाव वही-- वही भाव, जिसके हिय मे है अन्य भाव का चाव नहीं । वह महाराज