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यह कृतघ्न निज दर्प-मृत्तिका का कच्चा घट लाकर,- आर्यो की मेदिनी-शिला से टकराता है आकर ? विश्व देख ले आज कि किसको आर्य-सुता कहते हैं, यह भी देखे विश्व कि किसको अग्नि-हुता कहते है। ७६ फूल उठी माता सुन उसके विकट वीर वचनो को, अपनी प्यारी पुत्री के उन निपट धीर वचनी को, वह बोली–मै धन्य हुई हूँ, मेरी बेटी प्यारी, चलो आज हम चले जूझने की करके तैयारी । ७७ दासी, अश्वो को लाओ, मम शस्त्रो को भी लायो, आज राज-महिषी के सारे युद्ध-वस्त्र ले आप्रो । यो कह वीर राजरानी जब खडी हुई सज्जित हो,- तब कोमलता वीर सरोवर मे आई मज्जित हो। ७८ उछल तुरगो पर वे बैठी तेज-पुञ्ज ज्वालाएँ, राजमार्ग में दीप्त हो उठी यथा अग्नि-मालाएँ । तब सारे गान्धार नगर मे उमडा एक उदधि था,- छोड रहा वीरत्व उछल कर निज सीमान्त-परिधि था। तब श्यामल घन-गर्जन-स्वर से बोली राजकुमारी, मानो बिजली कडक-कडक कर दूर करे अंधियारी, 'सुनो वीर, गान्धार देश की वीरागना, सुनो तुम- जल्दी साजो अपनी अपनी तुरगागना, सुनो तुम ।