पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५२६

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अम्मिला ६८० शुभ्र शर्वरी नाथ मिस, विचरि अगम आकास, नील गगन सर, करत पिय, जल क्रीडा सायास । ६८१ सीकर-कण भू वक्ष पै नहि टपकावत इन्दु, जल-विहार प्रक्षिप्त है, ये पिय-कर' जलबिन्दु । ६८२ रज के प्रति कण-कणन मे मिले मोहि पिय आज, मैने अणु-अणु मे लख्यौ, पिय को आज स्वराज । खर निदाघ मे पिय बसत, पीतम बसत बसन्त, भई पीय-मय प्रकृति यह, पिय को प्रादि न अन्त । ६८४ पिय अनन्त आकाश सम, पिय अनन्त ज्यो काल, पिय अनन्त मम आश सम, पिय अनन्त व्रत पाल । ६८५ काल देश मय पीय मम, काल देश से पास, दूर, सब ठौर, हौं पिय पायौ भरपूर । ५१२