पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५२५

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पचम सर्ग ६७४ फूमि वृन्त पै सुमन घन, अलि रहे सोल्लाम, मानहु पिय-हिय कल्पना करति झूमि-अकि रास । ६७५ नम पिय की मृदुता भरी पुहुप पंखुरियन मध्य, जे अलि-गुजार मिस, उनके कोमल पद्य । हुसुम हृदय मे नहि भर्यो, यह पराग अधिकाय, म पीतम की चरण-रज, उनमें प्रकटी आय । ६७७ सुम दलन में, पत्र में, कटक हूँ मे प्राय, त उत क्रीडा करत है, मेरे पिय हरपाय । ६७८ ऊँची नील अटा चढ्यौ, बैठि शून्य की सेज, कटि करि रह्यौ खर तरणि, मम पीतम को तेज। ६७६ वस ऋतु की मदभरी मादकता मिस प्राय, तिम सालस देत है, अपनो रँग छलकाय ।