पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४७३

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पचम सर्ग ३६१ मम हिय-बगिया में खिले, भक्ति-कल्पना-फूल, अर्चन मौरभयुत कुसुम लेहु, अहो सुखमल 1 पुहप मुकोमल ये रंगे विविध भावना-रंग, वाम वायु डोलित, करत प्रकट विकास उमग । ये वियोग-कटक जमे फूलन के सँग प्राय, करहु कृपा एनी, सजन, कटक देहु हटाय ३ ३६४ कुमुमन न खिलि उठि रह्यौ आत्मसमर्पण भाव, विस्फाग्नि पंखुरी भई , नैकु न रह्यौ दुराव । वनमाली सीचत पुहुप, नयन-कणन ते नित्य, इत रस शोषत रहतु है, नित वियोग आदित्य । रग-विरगे भाव के कुसुम खिले सुकुमार, आवहु गुथहु इनहि तुम, हे मम मालाकार । ४५६