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1) ?" ३५ कहने लगा गुलाब,-"गुलाबीपन ? यह तो मेरा है," बोला कमल-"नेत्र विस्फारण, क्या यह भी तेरा है जुही चहकने लगी-"अहो, यह कोमलता किसकी है पारिजात बोला-स्वर्णीया रेखा यह जिसकी है ।" ३६ विहगो में भी होड़ लग गई वहाँ अतीव. अनूठी, शुक सारिकादि विहगालियाँ आपस मे सब रूठी, "मेरा है यह रव"-यो मैना बोल हुई मतवाली, “यह चापल्य ?--बतादे तू ही रे उपवन के माली-" ३७ यो कह खञ्जन लगा फुदकने पत्तो डाली-डाली पिक बोला-“मैं ने ही लो यह कण्ठ-ध्वनि है ढाली," सारे उपवन मे, वृक्षो से चहके बन्द विहग के, स्वागत-सूचक जय-ध्वनि निकली कण्ठो से सब खग के। प्रति डाली का फ्ल किये था अर्पण अपने मन को, इन कर कमलो में देने को उत्सुक था निज तन को, प्रति कुञ्जो से यही भावना मयी तान उठती थी, आत्म-निवेदन की मगलमय गान धार लुटती थी। ३६ उड आते निर्भीक खञ्जनो के वे दल चचल थे, प्रकटाते कन्धो पर बैठे-बैठे प्रेम अचल थे , कभी नासिका देख मिला की सकुचाता शुक था, सीता के नयनो से खञ्जन को होता कुछ दुख था।