पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३९४

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अम्मिला ७३ अति जाने कितनी दूरी से आता, वशी का वह स्वर-कपन आकर यि तरसा जाता , आ रही कहाँ से, बोलो, ध्वनि, मीड, मरोर सिसकती, अन्तर मे पैठ रही है, आतुर सो तनिक झिझकती , स्वर-दरद दिया है जिस ने वह अलख बाँसुरी वाला, छिप रहा कही अन्तर मे, पहने आँसू की मोला । ७४ स्वरमय वादन-साधन मे भर अमर बिथा अलबेली, उलझा दी फिर से किस ने करुणा की गूढ पहेली ? संगीत-प्रसारण मिस कठो से उमडी करुणा, स्वर-अवलम्बन वाद्यो से, वह उठी वेदना अरुणा, गायन मे रोदन भर के जग लूट लिया छिन भर मे, किस ने करुणा यह भर दी सगीत सुधामय स्वर में ? 390