पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३९२

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ऊम्मिला ? अपना, जग क्या है करुण विरह की धुंधली-सी परछाई जग-नयनो की दो अपने-पन की भॉई जव अश्रु-सलिल मे 'मै' ने प्रतिबिम्ब निहारा तब मूर्त-रूप बन आया- मन का यह कल्पित सपना, अश्रु बिम्ब से प्रकटी सचराचर की क्रीडाएँ, परछाई से प्रकटी है ये करुण विरह-पीडाएँ । vo आँसू है प्रलय-अश्रु का शोषण, उद्भाव-अश्रु-वर्षण सकर्षण-शून्य प्रलय उद्भव-हिय सघर्षण सूखे, जग डूबा, ऑसू बरसे, जग सरसा, ऑसू के सिचन से है यह सब जग अजर-अमर सा, जग ऑसू की खेती है, है विश्व बूंद नैनो की, है सृष्टि एक प्रति-छाया उन अलख नैन-सैनो की । ३७८