पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३७०

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ऊम्मिला २५ रो-रोकर बिलख यह काग दरद-दीवाना, का-पो का हो । तुम निष्ठुर, यह भेद नैक बतलाना, इस की-की, कहा-कहा मे सब समय बीतता जाता, प्राशा कह रही कि पीतम अब आता है, अब आता, इस अब-अब की जब तब मे, लगभग सब जीवन बीता, जब तनिक टटोला हिय को पाया रीता का रीता 1 २६ विहगो के कल कूजन से हिय करुणा उमड़ रही है, पखो के फैलाने आतुरता घुमड रही है, उनको चटपटी लगी है साजन के दरस-परसा की, हिय के निस्पन्दन के मिस अन्तर की करुणा कसकी, है नित अनन्त जीवन वह सुषमा पाने को जिसकी,- जग भर की विहगावलियाँ कूजन मिस रोई सिसकी ।