पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३६२

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अम्मिला । जग में, प्रशान्त निर्गति से- गति आविर्भूत हुई है, उस क्षण से प्रति अणु-कण मे, वेदना प्रसूत अव्यक्त भाव से जग यह जिस क्षण से व्यक्त हुआ है, यह विश्व ईश के हिय से- जिस क्षण से त्यक्त हुना है, उस दिन से उस ही क्षण से, उही है व्यथा पुरानी, अणु-अणु मे समा गई है, यह विरह-वेदना-रानी १० जग को विभु ने अपने से है अलग किया जिस दिन से, यह पुनर्मिलन-उत्कठा यि मे उमडी उस छिन से है असन्तोष-सा मन मे, कुछ असम्पूर्णता-सी परितृप्ति नही मिलती यह याचा मोघा-सी है सालस हाथो से, उड जायँ अचानक तोते ज्यो लुटे सुसचित निधियों, सब रहे नीद मे सोते । 1 मानो 1 ३४८