पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३३४

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ऊम्मिला निकला। ? जिस अन्तर से तुम-रिपुसूदन-- लक्ष्मण-भरत-गीत उस में क्रन्दन-व्यथा भरी है, जो है अति अतीत, विकला , मै यह कैसे भूलूँ, लालन , कि तुम ऑसुप्रो के फल हो, दाहक प्रबल निदाघ-प्रतीक्षा- के तुम मम शीतल जल हो, बिना रुदन के कब निकला है गायन कण्ठो से वह तो सदा बहा है केवल , दुख के लूटे कण्ठो से । ३०१ राम, तुम्हारी मधुर कण्ठ-ध्वनि,- इस के सुनने के पहले, कितने रोने पाया- तब तुमको उनके बदले, पाकर तुम्हे निहाल हुई हम माएँ, दुख भूली अगले, पर अँसुओ से सिचे-खिचे हो तुम मम गायन-स्वन, पगले, करुणा की गहराई से हूँ लाई तुम्हे उठा कर मैं, उसी गहनता मे पाऊँगी तुमको आज लुटा कर मै । रोये, ३२०